विनिमय की परिभाषा दीजिए तथा उसके आवश्यक त्तत्व बताइये बिक्री और विनिमय में अन्तर कीजिये । क्या विभाजन विनिमय होता है?
विनिमय की परिभाषा- धारा 118 के अनुसार, ‘‘जब दो व्यक्ति एक वस्तु का स्वामित्व किसी अन्य वस्तु के स्वामित्व के लिये परस्पर अन्तरित करते हैं, जिन दोनों वस्तुओं में से कोई भी केवल धन नहीं है या दोनों वस्तुयें केवल धन हैं तब वह संव्यवहार विनिमय कहलाता है।’’ विनिमय को पूरा करने के लिये सम्पत्ति का अन्तरण केवल उसी प्रकार किया जा सकता है जैसा कि सम्पत्ति के विक्रय द्वारा अन्तरण के लिये निर्धरित है।
उदाहरणार्थ-
1. अ अपना मकान ब को अपने खेत के बदले में अन्तरित करता है। यह विनिमय का संव्यवहार है।
2. ‘अ’ ब को अपने 2,000रू. की कीमत के मकान को अन्तरित करता है और ब अ को 1,000रू. की कीमत का एक खेत और 1,000रू. नगद देता है । यह संव्यवहार विनिमय ही कहलायेगा क्योंकि 1,000रू. जो नगद दिये हैं वह विनिमय की सम्पत्ति की कीमत को बराबर करने के लिये दिये गये है रणधीर अ0 रणधीर ए.आई.आर. 1937 ऑल 665 में कहा गया कि जहाँ कोई स्वामी अपनी सम्पत्ति का स्वामित्व दूसरे को आंशिक रूप से सम्पत्ति के बदले और आंशिक रूप से धन के बदले में अन्तरण करे वहाँ भी संव्यवहार विनिमय ही कहलायेगा।
विशेषतायें- विनिमय के व्यवहार की निम्न विशेषतायें है-
1. जब दो व्यक्ति परस्पर स्वामित्व के लिये स्वामित्व का अन्तरण करते हैं तो ऐसा अनतरण विनिमय कहलाता है, जैसे अ अपने मकान का स्वामित्व ब को और इसके बदले में ब अपने खेत का स्वामित्व अ को अन्तरित करे तो यह संव्यहार विनिमय कहलायेगा।
2. जब किसी वस्तु का स्वामित्व सम्पत्ति और अंशतः धन के लिये अन्तरण्सा करते हैं तो भी संव्यवहार विनिमय कहलायेगा, जैसे अ ने ब को 1,000रू. के मूल्य के मकान का अन्तरण किया और ब ने 1,000रू. का मूल्य का एक खेत और 500रू. नगद दिया तो अन्तरण विनिमय कहलायेगा।
3. जब दो पक्षों द्वारा किसी रूप में धन के बदले में धन का अन्तरण जाता है तो भी संव्यवहार विनिमय कहलाता है। किन्तु यदि किसी खेत के बदले में केवल 100रू. का भुगतान किया जाये तो संव्यवहार विनिमय न होकर बिक्री ही होगा।
4. विनिमय के लिये यह भी आवश्यक है कि अन्तरित की गई वस्तुयें एक-सी ही होनी चाहियें अर्थात् दोनों सम्पत्तियाँ या तो पूर्णरूप से चल या अचल होनी चाहियें।
विनिमय के आवश्यक तत्व- धारा 118 के अनुसार, एक वैध विनिमय के आवश्यक तत्व निम्न है-
1. पक्षकार- दान, बिक्री आदि संविदा की तरह विनिमय संविदा में भी दो पक्षों का हेना आवश्यक है और साथ ही पक्षों का सक्षम और स्वस्थचित होना आवश्यक हैं अतः एक नाबालिग और पागल व्यक्ति द्वारा किया गया विनिमय अवैध होता है।
2. सम्पत्तियाँ - विनिमय के अन्तर्गत अन्तरित की जाने वाली दोनों सम्पत्तियाँ अस्तित्व में होनी चाहियें। यदि दोनों सम्पत्तियाँ एक समान हों तो ऐसे संव्यवहार की रजिस्ट्री करना आवश्यक नहीं है, भले ही सम्पत्तियों का मूल्य कुछ भी क्यों न हो। लेकिन यदि अन्तरित की गई वस्तुओं में से एक चल है और दूसरी अचल तथा उसका प्रस्तावित मूल्य 100रू. या इससे अधिक है तो संव्यवहार की रजिस्ट्री कराना अनिवार्य हैं।
3. स्वामित्व का पारस्परिक अन्तरण - विनिमय के संव्यहार के लिये आवश्यक है कि इसका एक पक्ष अपनी वस्तु के स्वामित्व को दूसरे पक्ष की वस्तु के स्वमित्व के बदले में सौंप दे। अतः विनिमय में स्वामित्व की बदला-बदली एक दूरसे की एवज में होनी चाहिये। निम्न संव्यवहार अन्तरण होने पर भी विनिमय के अन्तर्गत नहीं आते-
4. एकरूपता- जिन सम्पत्तियों की अदला-बदली की जाये वे एक रूप अर्थात् एक समान होनी चाहियें । अतः सम्पत्ति के बदले में सम्पत्ति और मुद्रा के बदले में किया गया अन्तरण विनिमय कहलाता है।
5. पंजीकरण- यदि 100 रू. या इससे अधिक मूल्य की चल सम्पत्तियों का विनिमय करना हो तो उसका पंजीकरण अनिवार्य है। किन्तु 100रू. से कम मूल्य की चल सम्पत्तियों के लिये पंजीकरण आवरूष्क नहीं है। ऐसी वस्तुओं का विनिमय कब्जे के परिदान द्वारा पूरा किया जा सकता है।
6. विनिमय मूल्यहीन होता है- विनिमय में वस्तु के स्वामित्व के बदले में मूल्य हनंी दिया जाता । यदि मूल्य दिया जाता है तो ऐसा संव्यवहार बिक्री हो जाता है किन्तु यदि मूल्य विनिमय को बराबर करने के लिये दिया जाता है। तो वह संव्यवहार भी विनिमय ही कहलायेगा। उदाहरणार्थ- अ अपने एक मकान का अन्तरण ब को करता है और इसके प्रतिुल में ब, अ को अपना घोड़ा और 1000रू. देता है। यह संव्यवहार विनिमय है क्योंकि धन के रूप में ब द्वारा दिया गया मूल्य विनिमय को बराबर करने के लिये दिया गया है।
क्या विभाजन विनिमय होता है
विभाजन विनिमय नहीं होता। इन दोनों मे निम्न अन्तर है।
1. एक विनिमय के संव्यवहार में किसी सम्पत्ति का अन्तरण होता है। जबकि विभाजन में स्वामित्व का अन्तरण नहीं होता। विनिमय एक ऐसा संव्यवहार होता है जिसके फलस्वरूप एक पक्ष किसी एकसी सम्पत्ति में हित प्राप्त करता है जिसमें पहले से उसका कोई हित नहीं था। लेकिन विभाजन में उन सहभागीदारों (मिताक्षर) के हिस्से परिभाषित एवं निश्चित किये जाते हैं, जिनका उसमें पहले से ही हित मौजूद था, या सहभागीदारों (दायभाग) के हिस्से अलग-2 करके उन्हें सम्पत्ति के विशिष्ट भाग दिये जोते हैं। अतः विभाजन के अन्तर्गत पहले से ही पक्षों का हित विभाजित सम्पत्ति में विद्यमान रहता है जबकि विनिमय की जाने वाली सम्पत्ति में पक्षों का ऐसा कोई हित नहीं होता।
2. अचल सम्पत्ति का विनिमय यदि उसकी कीमत 100 रू. या अधिक है तो केवल एक रजिस्टर्ड दस्तावेज के द्वारा ही किया जा सकता है जबकि विभाजन बिना किसी लिखित के भी हो सकता है। किन्तु जहाँ किसी विभाजन की शर्तें लिख दी जाती है वहाँ यदि सम्पत्ति अचल है और 100रू. या अध्कि कीमत की है तो उसका रजिस्ट्रेशन आवश्यक है।
बिक्री तथा विनिमय में अन्तर - विक्रय तथा विनिमय मं मुख्य अन्तर निम्न है-
विक्रय तथा विक्रय की संविदा
1. बिक्री अचल सम्पत्ति के स्वामित्व का अन्तरण हैं बिक्री का संविदा स्वयं, सम्पत्ति पर कोई भार पैदा नहीं करता।
2. बिक्री से लोकलक्षी अधिकारों का जन्म होता है। बिक्री का संविदा व्यक्तिलक्षी अधिकारों को जन्म देता हैं।
3. बिक्री को निष्पादित करने हेतु सम्पत्ति का परिदान, उसका मूल्य चुकाना तथा रजिस्टर्ड कराना आवश्यक है। बिक्री की संविदा को रजिस्टर्ड कराना आवश्यक नहीं है।
4. यह एक निष्पादित संविदा है। यह एक निष्पादिनीय संविदा है।