केन्द्र तथा राज्य सूचना आयोग के पदाधिकारियों की स्थिति के सम्बंध में सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 में 'हाल में' हुए संशोधनों
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005) भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण अधिनियम है। इस अधिनियम के तहत केन्द्र में मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner - CIC) और सूचना आयुक्तों (Information Commissioners - ICs), तथा राज्यों में राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioners - SICs) नियुक्त किए जाते हैं।
हाल के वर्षों में इस अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं, जिनमें केन्द्र और राज्य सूचना आयोग के पदाधिकारियों की स्थिति, वेतन, सेवा शर्तों और कार्यकाल से संबंधित प्रावधानों में बदलाव किया गया है।
सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 (RTI Amendment Act, 2019)
यह अधिनियम जुलाई 2019 में संसद द्वारा पारित किया गया। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रमुख संशोधन किए गए:
1. कार्यकाल (Tenure) में बदलाव:
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मूल अधिनियम, 2005 में:
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मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) निर्धारित था।
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संशोधन के बाद:
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अब कार्यकाल को अधिनियम में निर्धारित न कर, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के माध्यम से तय किया जाएगा।
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2. वेतन और सेवा शर्तों में बदलाव:
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मूल अधिनियम, 2005 में:
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CIC और ICs का वेतन एवं सेवा शर्तें भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के समकक्ष थीं।
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संशोधन के बाद:
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अब उनका वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित की जाएंगी।
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राज्य सूचना आयोगों के आयुक्तों की सेवा शर्तें भी अब राज्य सरकार द्वारा नहीं, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
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3. स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर प्रभाव:
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इन संशोधनों से यह आलोचना हुई कि सूचना आयोगों की स्वतंत्रता और संवैधानिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
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सरकार द्वारा वेतन, कार्यकाल और सेवा शर्तें तय करने से उनकी स्वायत्तता पर नियंत्रण बढ़ता है, जिससे वे सरकार के प्रति जवाबदेह हो सकते हैं, न कि नागरिकों के प्रति।
निष्कर्ष:
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में किए गए 2019 के संशोधन ने सूचना आयोगों की स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। यद्यपि सरकार का तर्क है कि यह संशोधन प्रशासनिक सुविधा और एकरूपता के लिए आवश्यक थे, लेकिन आलोचकों का मत है कि इससे सूचना आयोगों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न उठता है। इस प्रकार, इन संशोधनों की समीक्षा करते समय यह आवश्यक है कि नागरिकों के सूचना के अधिकार की रक्षा करते हुए पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को बनाए रखा जाए।