पट्टे की परिभाषा इसके आवश्यक तत्व

 

पट्टे की परिभाषा दीजिये तथा इसके आवश्यक तत्वों को स्पष्ट कीजिये।

पट्टे की परिभाषा- धारा 105 के अनुसार, अचल सम्पत्ति का प्ट्टा ऐसी सम्पत्ति का उपभोग करने के अधिकार का ऐसा अन्तरण है, जो एक स्पष्ट समय के लिये या सदैव के लिये किसी कीमत के जो, दी गई हो या जिसे देने का वायदा किया गया है अथवा धन या फसलों के अंश या सेवा या किसी अन्य मूल्यवान वस्तु के जो कालावधीय रूप से था निर्दिष्ट अवसरों पर अन्तरिती द्वारा, जो उस अहतरण को ऐसी शर्तों पर स्वीकार करता है, अन्तरणकर्त्ता को दी गई या दी जानी है, प्रतिफल के रूप में किया या दिया गया हो। यहॉ अन्तरणकर्त्ता पट्टाकर्त्ता तथा अन्तरिती पट्टेदार कहलाता है कीमत प्रीमियम कहलाती है।

सामण्ड के अनुसार, ‘‘एक पट्टा अपने साधारण अर्थ में, इस प्रकार का विल्लघम है जो कब्जे के अधिकार में निहित है और किसी दूसरे व्यक्ति के स्वामित्व की सम्पत्ति को उपयोग में लाना आवश्यक तत्व है। यह स्वामित्व और कब्जा का साधिकार पृथक्करण है’’ स्पष्ट है कि पट्टा केवल संविदा मात्र नहीं है बल्कि यह भूमि के हित का अन्तरण करता है। इस प्रकार यह पट्टेदार को लोकलक्षी अधिकार प्रदान करता है।

उपरोक्त वर्णन के आधारा पर हम कह सकते है। कि पट्टा अचल सम्पत्ति के उपभोग के अधिकार का एक अन्तरण है जो एक निश्चित समय तक के लिये एक परिदत्त मूल्य और प्रतिज्ञाकृत मूल्य के प्रतिफल के स्वरूप किया जाता है। धारा 108 के अधीन पट्टाधारी को यह अधिकार है कि उसे भूमि का कब्जा प्राप्त हो जाये । इस प्रकार पट्टा भूमि के उपभोग के अधिकार का अन्तरण है। जिस हित का अन्तरण किया जाता है उसे पट्टाधारित हित कहा जाता है पटटकर्त्ता पट्टे की अवधि तक के लिये पट्टे की सम्पत्ति मं उपभोग के हित को पट्टाधारी के पक्ष में छोड देता है।

पट्टे के आवश्यक तत्व- धारा 105 के अनुसार,‘‘ पट्टे के तत्वों को पाँच पी द्वारा प्रकट किया जा सकता है।-

1. पक्षकारः- पट्टे के पक्षकार अर्थात् पट्टाकर्ता और पट्टाधारी में पट्टा करने की क्षमता होनी चाहिये। पट्टा एक वैध संविदा होता है। अतः संविदा अधिनियम में वर्णित सभी क्षमतायें पक्षें में होनी चाहियें। एक नाबालिग पट्टा करने में सक्षम नहीं है क्योंकि पट्टे के अधीन कुछ शर्तें ऐसी होती हैं। जिनको नाबालिंग के विरूद्ध पूरा नहीं कराया जा सकता ।

2. सम्पत्तिः पट्टा केवल ऐसी अचल सम्पत्ति का किया जाता है, जिसे उपभोग में लाया जा सके, जिस पर कब्जा स्थापित किया जा सके तथा जो नष्टवान प्रकृति की न हो। अतः पट्टाधारी को पट्टे में दी जाने वाली सम्पत्ति पर काबिज होना आवश्यक है।

3. आंशिक अन्तरणः- पट्टे के अन्तर्गत सम्पत्ति का आंशिक हस्तान्तरण होता है, क्योंकि यह पूर्ण स्वामित्व का नहीं, बल्कि सीमित स्वामित्व का अन्तरण है। अतः पट्टे के अन्तर्गत केवल सम्पत्ति के उपभोग के अधिकार का अन्तरण होता है।

4. प्रतिफलः- एक वैद्य पट्टे के लिये प्रतिफल का होना आवश्यक है जो एक पक्ष द्वारा सम्पत्ति के उपयोग के बदले में नियमित रूप से दूसरे पक्ष को दिया जाना चाहिये धारा 105 के अनुसार, यदि अचल सम्पत्ति का पट्टा फसल के हिस्से के प्रतिफल के लिये किया जाता है तो प्रतिफल या तो अधिमूल्य होता है या किराया, या अधिमूल्य और किराया दोनों।

5. अवधिः- पट्टे में अवधि बहुत ही प्रमुख तत्व है । पट्टा किसी निश्चित अवधि के लिये किया जाना चाहिये। अतः पट्टे के दस्तावेज में यह स्पष्ट रूप से वर्णित होना चाहिये कि पट्टा कब से शुरू होकर बक खत्म होगा। आशुतोष बनाम चन्दीचरण A.I.R. 1982, Cal.179 में निर्धारित किया गया कि यदि पट्टे के दस्तावेज में कोई निश्चित अवधि नहीं दी गई है तो वह पट्टाधारी के जीवनकाल तक ही वैध माना जायेगा।

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